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|रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल
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<poem>
क्यों फिरै भरमति सुरति...... ।। टेक ।।

दया का दामण कर्म की कुर्ति, हरि रंग मै रंगवाले।
गुरू चरण का चीर औढके, गम का घोटा लगवाले।
ओढ पहर सिंगर कै सजनी, झटपट तट पै जाले।
सत्संग गंग मैं आले न्हाले, मन का मैल हरै नै।।

गरज का गहना पहर लाडली, ओढ पहर सिंगरले।
प्रेम पियाला पिला पिया को, अपणे बस मैं करले।
गुरू चरण की शरण चली, जा परलै पार उतरले।
नंदलाल को उर मैं धरले, निर्भय कदम धरै नै।।
</poem>
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