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<poem>
कल तक जो बलात्‍कार करते आया है
और बलत्‍कृत स्‍त्री के गुप्‍तांगों में बंदूक चला देते आया है
कल तक जो अपहरण करते आया है
और फिरौती की रकम न मिलने पर
अपहृत की आंखें निकालकर
और उसको गोली मारकर
चौराहे के पैर पर लटका देते आया है

कल तक जो राहजनी करते आया है
और राहगीरों को लूटने के बाद
उनके परखचे उड़ा देते आया है

कल तक जो बात की बात में
बस्तियां दर बस्तियां फूंक देते आया है
और विरोध नाम की चूं तक भी होने पर
चार बस्तियों को और फूंक देते आया है

कल तक जिसे
दुनिया की तमाम बुरी शक्तियों के समुच्‍चय के रूप में समझा जाता रहा है
और लोग-बाग जिसके विनाश के लिए
देवी-देवताओं से मन्‍नतें मांगते आया है
आज वही छाती पर
कलश जमाए लेटा हुआ है दुर्गा की प्रतिमा के सामने
उसकी बगल में
दुर्गा सप्‍तशती का सस्‍वर पाठ किया जा रहा है
भजन और कीर्तन हो रहे हैं
लोग भाव-विभोर नृत्‍य कर रहे हैं
उसकी आरती उतारी जा रही है
अग्नि में घृत, धूमन और सरर डाले जा रहे हैं
घंटी और घंटाल बज रहे हैं
दूर-दूर से आए दर्शनार्थी
अपने हाथों में फूल, माला, नारियल आदि लिए उसकी परिक्रमा कर रहे हैं
उसके पैरों में अपने मस्‍तक को टेक रहे हैं
और करबद्ध ध्‍यानस्‍थ
एकटंगा प्रतीक्षा कर रहे हैं
उससे आशीर्वाद के लिए

ये कैसा देश है
और यहां कैसे-कैसे लोग हैं !
</poem>