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11:14, 10 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
भीषण गरमी है
आग के गोले बरस रहे हैं
पत्ता तक नहीं हिल रहा
पाताल भी सूख गया होगा
पिछले पच्चीस सालों का रिकार्ड भंग हो रहा है ...
बड़े-बूढ़ों की गरमी
ऐसे ही निकल रही थी
और दूधमुंहे बच्चों की गरमी
घमोरियों में निकल रही थी!
</poem>