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11:18, 10 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
जिनकी सारी आहें, इच्छाएं
और उच्छ्वास शून्य से टकराकर रह जाते हों
जिनका कोई भी निर्णय
जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देता हो
और जिनके नाम का
कोई पानी नहीं चलता हो
लेकिन जिनका उपयोग
उनके पुरुषों द्वारा बिस्तर गर्म करने के लिए
जब-तब कर लिया जाता हो,
जो अपने पुरुषों की हमप्याला बनकर रह गई हों
और जो बोनस में बच्चा भी पैदा करती जा रही हों
...तो ऐसी ही स्त्रियां तो होती हैं यौन दासियां!
</poem>