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स्त्रीवादिनी / पंकज चौधरी

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<poem>
भारत की महान स्त्रीवादिनी हैं वे
सिमोन द बोऊवार और जर्मन ग्रिएर
से नीचे बात ही नहीं करती वे
विवाह और परिवार नाम की संस्थाओं को
बेड़ियां मानती हैं वे
पति-पत्नी में फूट पैदा कर दो
इसकी उदघोषणा करती रहती हैं वे
पूरे ब्रह्माण्ड के पुरुषों को
चारागाह में तब्दील कर दो
ऐसी ख़्वाहिश रखती हैं वे
मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह की तरह
बीस कोस तक का एक हरम बनाना चाहती हैं वे
जिसमें कम से कम पचास देशों के पुरुष हों
ऐसी तमन्ना रखती हैं वे

भारत की महिलाओं के लिए
पचास फीसदी नहीं बल्कि अस्सी फीसदी आरक्षण हों
इसकी पुरज़ोर वकालत करती हैं वे
लेकिन उसमें दलित-बहुजन महिलाओं का भी कोटा तय हो
के सवाल पर
अपने एक मित्र को तुरंत अनफ्रेंड कर देती हैं वे!

(अरविंद शेष के लिए)
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