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द्विज महान / पंकज चौधरी

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<poem>
वर्ग-शत्रु के खिलाफ
वे गोली दागते रहते हैं
पूंजीवाद के खिलाफ
वे समुद्र की तरह गर्जना करते रहते हैं
महिला उत्पीड़न के खिलाफ
वे शेरों की तरह दहाड़ते रहते हैं
साम्प्रदायिकता के खिलाफ
वे डायनामाइट की तरह विस्फोट करते रहते हैं
ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ
वे दावानल फैलाते रहते हैं
बाज़ार के खिलाफ
वे तांडव नृत्य करते रहते हैं
उपभोक्तावाद की खिलाफ
वे तीर चलाते रहते हैं

लेकिन जाति के सवाल को उठाकर देखिए
वे इस तरह दूम सटकाकर भागेंगे
जैसे कोई मुर्गी भी नहीं भागती होगी।
</poem>