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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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<poem>आज बसंत की रात,<br>गमन की बात न करना!<br><br>
धूप बिछाए फूल-बिछौना,<br>बगिय़ा पहने चांदी-सोना,<br>कलियां फेंके जादू-टोना,<br>महक उठे सब पात,<br>हवन की बात न करना!<br>आज बसंत की रात,<br>गमन की बात न करना!<br><br>
बौराई अंबवा की डाली,<br>गदराई गेहूं की बाली,<br>सरसों खड़ी बजाए ताली,<br>झूम रहे जल-पात,<br>शयन की बात न करना!<br>आज बसंत की रात,<br>गमन की बात न करना।<br><br>
खिड़की खोल चंद्रमा झांके,<br>चुनरी खींच सितारे टांके,<br>मन करूं तो शोर मचाके,<br>कोयलिया अनखात,<br>गहन की बात न करना!<br>आज बसंत की रात,<br>गमन की बात न करना।<br><br>
नींदिया बैरिन सुधि बिसराई,<br>सेज निगोड़ी करे ढिठाई,<br>तान मारे सौत जुन्हाई,<br>रह-रह प्राण पिरात,<br>चुभन की बात न करना!<br>आज बसंत की रात,<br>गमन की बात न करना।<br><br>
यह पीली चूनर, यह चादर,<br>यह सुंदर छवि, यह रस-गागर,<br>जनम-मरण की यह रज-कांवर,<br>सब भू की सौगा़त,<br>गगन की बात न करना!<br>आज बसंत की रात,<br>
गमन की बात न करना।
</poem>