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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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<poem>
मैं अकंपित दीप प्राणों का लिए,
यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
बन्द मेरी पुतलियों में रात है,
हास बन बिखरा अधर पर प्रात है,
मैं पपीहा, मेघ क्या मेरे लिए,
जिन्दगी का नाम ही बरसात है,
साँस में मेरी उनंचासों पवन,
यह प्रलय-पवमान मेरा क्या करेगा?
यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
मैं अकंपित दीप प्राणों का लिएकुछ नहीं डर वायु जो प्रतिकूल है,<br>यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?<br>बन्द मेरी पुतलियों और पैरों में रात कसकता शूल है,<br>हास बन बिखरा अधर क्योंकि मेरा तो सदा अनुभव यही,राह पर प्रात हर एक काँटा फूल है,<br>बढ़ रहा जब मैं पपीहा, मेघ क्या मेरे लिएविश्वास यह,<br>जिन्दगी का नाम ही बरसात है,<br>साँस में मेरी उनंचासों पवन,<br>पंथ यह प्रलय-पवमान वीरान मेरा क्या करेगा?<br>यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?<br><br>
कुछ नहीं डर वायु जो प्रतिकूल है,<br>और पैरों में कसकता शूल है,<br>क्योंकि मेरा तो सदा अनुभव यही,<br>राह पर हर एक काँटा फूल है,<br>बढ़ रहा जब मैं लिए विश्वास यह,<br>पंथ यह वीरान मेरा क्या करेगा?<br>यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?<br><br> मुश्किलें मारग दिखाती हैं मुझे,<br>आफतें बढ़ना बताती हैं मुझे,<br>पंथ की उत्तुंग दुर्दम घाटियाँ<br>ध्येय-गिरि चढ़ना सिखाती हैं मुझे,<br>एक भू पर, एक नभ पर पाँव है,<br>यह पतन-उत्थान मेरा क्या करेगा?<br><br/poem>