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घुटने मोड़कर पेट में सटाये
वक्त और काम की मार से टूटी हुई देह
आसानी से मुड़ जाती है बैठी हुई है पैर मोड़ेघुटनों को पेट के साथ जोड़ेचाय पीती का गिलास लिये हाथपी रही है चायहर चुस्की का रस लेती हुईपलों में डूबकर जीती हुईखाना मिले, न मिलेभूख से पेट जले तो जलेपर चाय ज़रूर मिलेदिन-भर में कई-कई बारक्योंकि यही तो है आधारचाय और बीड़ी परचल रहा है जीवनबीड़ी फूँकती है दनादनजल गये हैं फेंफड़ेरुक रहा स्पंदनफिर भी हारा नहीं है मनचलती हैतो साँसें फूलती हैं पर है निर्विकारनहीं है चिंताउसका तो यही मौजयही आधारनहीं है कोई शिकायतन आसमां से, न ज़मीं सेकहती नहीं भेद किसीसेमेल रखती है सभीसेविदुषियों से भी अधिक विचारशीला वह किंतु संघर्ष का टीला वहजानती है जीवन की लीला वहघर है झगड़े का घरमिलती है उपेक्षावह कहती है राम की इच्छावह जानती है सचनहीं पोसती झूूठे आदर्शगल गया है तन-मनफिर भी हर हाल मेंजी रही है जीवनचाय पीती है गरीब औरतदुबली अंगुलियों से थामे चैन का गिलासफिर धुँए से भरेगी साँसयही है आनंद का सारसब भूलोकि दुनिया है बेकार
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