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गीत / कुमार मुकुल

876 bytes added, 04:56, 5 अगस्त 2008
जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने
दूर हो तुझसे बीतेंगे साल कितने
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं
फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है
भर छाती धंसकर जीता हूं जीवन
कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
 
जाने...
 
फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं
लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है
खट-खट कर कैसे राह बनाता हूं थोड़ी
जानता हूं आगे बैठा भूचाल भी है
 
जाने...
 
दिल्ली,97