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Kavita Kosh से
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'''शिला थी कभी '''
कितने आए-गए
आँधी -तूफ़ान
पराजित हो गई।
आ गया कोई
'''पथिक चुपचाप '''
शिला को चूमा
अंकित कर दिए
मधु अधर,
कोमल कराग्र से
'''छुअन लिखी''';
करतल की छाप
उभरी ,खिली
पथिक चौंका-
यह क्या ज़ादू हुआ
अमृत झरा!
द्वि अधरों -करों से
केवल छुआ !
न तो टूटेगी शिला
मिटेगा नहीं
'''लिखा जो शिलालेखसामान्य जैसे'''
अधरों ने , करों ने।
क्योंकि छुपा है
रोम -रोम में-
अधर -छुअन में
करों के-स्पन्दन में। 53
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