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बंद दरवाज्जा / कविता भट्ट

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खुलण की नहीं बची आस,
पर सच कहूँ ! बेर नी क्यूं
इन सार्याँ नै है
हवा पै बिस्वास्।
लाग्गै है सुणैगी सिसकियाँ
'''( हरियाणवी में अनुवाद: डॉ.उषा लाल )
'''
['''भ ,ध,फ ,आदि कुछ वर्ण गहरे काले रंग में हैं'''. उच्चारण करते समय यहाँ विशेष प्रकार का बलाघात( लहज़ा) होता है , जो भाषा की विशिष्ट पहचान है .
</poem>