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{{KKCatHaryanaviRachna}}
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'''क्यों फिरै भ्रमति श्रुति , गुरुवां गुरुआं की टहल करै नै ।। टेक ।।'''
चंचल-चित्त ला चरण-शरण मैं, गम की गागर भरले नै,