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|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)
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<poem>
'''भगवान रूप होवै भूप विप्र का, कौण झूठादे बाणी नै,'''
'''इस सुपने का अर्थ लगाद्यां, जो आया माया राणी नै || टेक ||'''

जिस त्रिया नै धोला हाथी, स्वरूप दिखज्या सौंपन मैं,
नोमैं महीनै उस त्रिया कै, एक कीर्तिवान पुत्र जन्मै,
अलौकिक शक्ति का बणै स्वामी, घाटा रह न अन्न धन मै ,
अहिंसा का बण प्रचारी, वो दुःख-विपता काटै छन मैं,
आये-गए का मान राखिये, दान दिए धी-ध्याणी नै ||

आवै विष्णु जी अवतार धारकै, पैदा तेरै भगवान होज्या,
अष्ट वसु और ग्यारा रूद्र, 12 सूर्य सी शान होज्या,
बल-बुद्धि मैं ब्रहस्पतिदेव सा, चातुर और गुणवान होज्या,
काम-क्रोध मद-लोभ तजे तै, आत्मदेह मै ज्ञान होज्या,
देवी-देवता भी दर्शन नै तरसै, जणू मीन तरसरी हो पाणी नै ||

वृद्ध आदमी ना दीखण पावै, जिसकी दुखिया काया हो,
कोढ़ी-कंगला नहीं फेटण पावै, जिस धोरै ना धनमाया हो,
मृत-शैया ना आगै पावै, जो मनुष काळ नै खाया हो,
संत-बैरागी ना मिलण पावै, जो भगमा बाणा कर आया हों,
इन चार बातां का ध्यान राखिये, कदे पिज्या भूप बिन छाणी नै ||

ना तो त्याग गृहस्थी रस्ता टोहले, जीणे और मरणे का,
लाख-चौरासी जियाजुन के, चक्कर मै ना फिरणे का,
बैकुण्ठ लोक मै बणै ठिकाणा, तलै फेर ना गिरणे का,
कहै ललित आदमदेह मै, शुभ कर्म हो करणे का,
और ज्यादा जै बुझै भूप तूं, जाईये गाम बुवाणी नै ||
</poem>
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