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Kavita Kosh से
पाँव जले छाँव के
हम ठहरे गाँव के
हींसे में भूख-प्यास
लट्ठ हुए नाव के
हम ठहरे गाँव के
पानी बिन कूप हुए
हाथ लगे दाँव के
हम ठहरे गाँव के
याचना के द्वार थे