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तीन पहर बीतगे पुरे, थी चौथे पहर की रात पिया,
चार अप्सरा मनै लेवण आई, मेरा होया फ़िक्र मै गात पिया,
खड़े 52 कलवे 56 कलवे 52 भैरू, संग मै नाथो के नाथ पिया,
कलवे-भैरू देख पति जी, मेरा होग्या जी घबराणे नै,
एक धोला हाथी स्वर्णगिरी के, लाग्या चक्र लाणे नै,