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16:32, 2 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नज़ीर बनारसी
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ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी
मेरी ख़ैरियत भी पूछी, किसी और की ज़बानी
(इनायत = कृपा, दया, मेहरबानी)
मेरा ग़म रुला चुका है तुझे बिखरी ज़ुल्फ वाले
ये घटा बता रही है, के बरस चुका है पानी
तेरा हुस्न सो रहा था, मेरी छेड़ ने जगाया
वो निगाह मैने डाली के सँवर गयी जवानी
मेरी बेज़ुबाँ आँखों से गिरे हैं चन्द क़तरे
वो समझ सके तो आँसू, न समझ सके तो पानी
</poem>