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सीते! कह दो राम से, पर्णकुटी सुख धाम!मैं मृग बढ़ हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर आ रही, सोजाओं श्री राम!मोल न सिर का माँगा
सावधान हो लखन! खीचती हूँ मैं एक लकीर तुम न कहो धरती कह देगी “कहि कहि विपिन कथा दुख नाना” माँगों उनसे तीर मिट्टी-पत्थर-पानी सब पर छाई एक निशानी
सो जाओ श्री राम और मैं हूँ वीरांगना जागी हो जाए इतिहास भेले चुप हम कर लें नादानी किन्तु भाल भारत माँ की वीर सपूती मैं ही ललित-ललाम का ऊँचा कह देगी कुर्वानीमैं मृग बढ़ प्रकृति लिखेगी अमर पट्ट पर जो मुँह खोल न माँगा हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर आ रही, सो जाओ श्री राम! ...
पूछना मेरा पता चला गया जो वीर खींच कर निज शोणित की रेखा भारत सीते! बंद रहो तुम मत लता तरू बृन्द से मैं तो शरहद पर चली आवाज आई हिन्द से अडिग अक्ष्मण रेखा
“पलंग पीठ तजि गोद हिंडोला” अब न रहूँगी भारत की शरहद पर मर जो खींचा अमिट निशानीनिशिचर निकर से लड़ लूँगी मैं हे ज्योति के धाम खो जायेगा जिस दिन सूरज, सो जायेंगे प्राणी मैं मृग बध उसके यश को शून्य कहेगा जो मुँह खोल न माँगा हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर आ रही, सोजाओ श्री राम!...
राम धर दे धनुष, दे दे तीर तरकसदुश्मन के सिर फूल चढ़ा दो थक गई तेरी भुजाएँ, पड़ ठंडी ये नस नस लाल खून का पानी शीश चढ़ाने वालों की भू है भारत माँ रानी
मेरा कोटि प्राणम उसे है मैं नहीं अबला रही अब, युद्ध बेकाम जो सिर टोल न माँगा मैं मृग बध हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर आ रही, सोजाओ श्री राम! ...
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