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बहुत दिनों में धूप / अनिल जनविजय
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12:25, 5 सितम्बर 2018
यह शरद की धूप कितनी कमनीय है
चारों ओर जैसे स्वर्ण ही स्वर्ण फहरा है
(मस्क्वा, 2018)
</poem>
अनिल जनविजय
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