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05:04, 10 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रेवंत दान बारहठ
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avita}}
<poem>
जब इंसान से इंसान किनारा करने लगे
और डरने लगे आदम की ज़ात ख़ुद से
झूठ कपट के व्यापार और बेईमानी के बीच
जब खुले आम विश्वास ठगा जाए
जब धर्म कर्म से लजाने लगे और कर्म कायरों से
ऐसे विकट समय में पृथ्वी पैदा करती है
अपनी कोख में छुपाया हुआ अनमोल बीज
मसीहा सत्य का आता है इसी तरह
जिसका कोई सगा नहीं होता
जिसको सताया जाता है हर बार
सत्य की जिसकी ख़ातिर
यीशु चढ़ गए सूली पर,
जहर पिया सुकरात ने
आग से आलिंगनबद्ध हुआ ब्रूनो,
अपने सीने पर गोली खा गए गाँधी।
तारीख़ के पन्ने पलटो तो पता चलेगा
कि साँच को कोई आँच नहीं आई आज तक
आकाश,अग्नि,जल,पृथ्वी और हवा के दरम्यान
सच था, सच है और सच रहेगा।
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