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|संग्रह=गंग नहौन / निशाकर
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<poem>
एक दिन
छाउर भऽ जएतै ओकर देह
मिझरा जायति माटिमे
तैयो
चमकैत रहतै आकर स्मृति
बिजुरी बनि हमरा मोनमे।
आशिकीक रंग मद्धिम नहि होएतैक
कहियो
आशिकीक रंग मद्धिम नहि होएतैक
कहियो
आशिकी खतम नहि होएतैक
हमहूँ
कालसँ लड़ैत रहबै
लथ-पथ होइत रहबै।
माछ
मखान
आ पान
एहन कोनो बात नहि।
</poem>