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बालु / गंग नहौन / निशाकर

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<poem>

एहि बेर
सिमरिया घाटमे
भरि मोन नहैलियै
ने पाण्डाकें द्रव्यदान देलियै
ने फूल-परसाद चढ़ेलियै
ने धूप-अगरबत्ती देखैलियै
मंगनियेमे लुटि लेलियै
गंगा स्नानक अपार सुख।

बालु
सटल अएलै
हमर संग-संग
हमर घर-आँगन धरि
हमर अंगाक जेबीमे
अपन हाजरी बनबैत
गंगाकें मोन पाड़ैत।

</poem>
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