भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=गंग नहौन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=गंग नहौन / निशाकर
}}
{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
एहि बेर
सिमरिया घाटमे
भरि मोन नहैलियै
ने पाण्डाकें द्रव्यदान देलियै
ने फूल-परसाद चढ़ेलियै
ने धूप-अगरबत्ती देखैलियै
मंगनियेमे लुटि लेलियै
गंगा स्नानक अपार सुख।
बालु
सटल अएलै
हमर संग-संग
हमर घर-आँगन धरि
हमर अंगाक जेबीमे
अपन हाजरी बनबैत
गंगाकें मोन पाड़ैत।
</poem>