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13:48, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
तुम्हारी शोख़ नज़रों का जिगर पर तीर चलता है
तुम्हारा खेल होता है हमारा दम निकलता है
तुम्हारी आंख का जादू हमारे दिल पे चलता है
तुम्हारी आंख चलती है हमारा दिल मचलता है
सियासत ने कुछ ऐसे आ दबोचा है हक़ीक़त को
कि अब अल्फ़ाज़ का मतलब भी मतलब से निकलता है
जराहत दिल की होती है नमक नज़रें लगाती हैं
तुम्हारे इश्क़ का निश्रत हमारे दिल पे चलता है
अक़ीदत शर्त है यारो महब्बत और इबादत में
ये जज़्बा गर सलामत हो तो पत्थर भी पिघलता है।
शराफ़त से सियासत को हराया जा नहीं सकता
चुभा हो गर कोई कांटा तो कांटों से निकलता है।
</poem>