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रोज़ हम आह आह करते हैंनहीं जाती कभी उस दिल की वीरानी नहीं जातीदम महब्बत का फिर भी भरते हैंकि जिससे क़द्र तेरे ग़म की पहचानी नहीं जाती
आप क्यों खून करते हैं दिलकागिरां जानी बशर की ज़िन्दगी के साथ जाती हैहम तो खुद दिल को खून करते हैंकिसी की मौत से पहले गिरां जानी नहीं जाती
शब गुज़रती मेरी बरबदियों पर जो हमेशा मुस्कुराते थेमेरे मरने पे अब उनकी परेशानी नहीं जाती कोई ग़म ही के नग़मे तो सुनाता रहता है आहोज़ारी मेंहर दमअश्क़बारी में दिन गुज़रते मगर अफ़सोस मेरी तंग दामानी नहीं जाती किसी बेमहर से इसको तवक़्क़ो है महब्बत कीनहीं जाती दिले-नादां की नादानी नहीं जाती कभी तुम याद आते हो कभी सदमे रुलाते हैंहमारी आंख से अश्क़ों की तुगयानी नहीं जाती लहू से हमने ऐ अंजान सींचा गुलशने दिल कोमगर इस पर भी इसकी हैफ़ वीरानी नहीं जाती।
एक गुलरुख की आरज़ू में हम
अपने दामन में ख़ार भरते हैं।
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