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14:17, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
लम्हे कुछ ऐसे ज़ीस्त में आकर चले गये
मुझको लहू के अश्क़ रुलाकर चले गये
आये वो मेरी ज़ीस्त में आकर चले गये
इक आग मेरे दिल में लगाकर चले गये
दिल का क़रार जा चुका जाता रहा सुकूँ
आंखों से मेरी नींद उड़ाकर चले गये
इक मेरे घर को छोड़ के बरसे वो हर तरफ
बादल खुशी के अर्श पे आ कर चले गये
बस याद रह गई है मगर वो नहीं रहे
इक दर्द मेरे दिल में बसा कर चले गये।
</poem>