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03:07, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिल में फिर आग लगाती हैं चटकती कलियाँ
रुत बदलती है तो अहसास बदल जाता है
फूल जलते हैं तो होती है फ़ना ख़ुशबू भी
दिल जो जलता है तो अहसास भी जल जाता है
मैं तो उस चांद की क़ुर्बत में रहा हूँ जिसको
इक नज़र देख के सूरज भी पिघल जाता है
दिल में हो प्यार का अहसास तो अपने हैं सभी
ये वो सिक्का है जो हर देस में चल जाता है।
</poem>