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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
किस क़दर तेज़ है हवा बाबा
पेड़ हर एक गिर गया बाबा

अब तो वो बात मत छुपा बाबा
सर से पानी गुज़र गया बाबा

जा-ब-जा किस लिए भटकता है
कुछ तुझे आज तक मिला बाबा

तेरे अंदर भी दश्तो-सहरा है
क्यों बनों में है घूमता बाबा

जिसने तुझको तलाश बक्शी है
बात उसकी कोई सुना बाबा

तू हरेक से जिसे छुपाता था
क्या वो नासूर भर गया बाबा

जाने उसको ख़याल क्या आया
रौशनी में नहा गया बाबा

फूल को देख, शाख़ को छू ले
ज़ीस्त का लुत्फ कुछ उठा बाबा।

</poem>
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