901 bytes added,
03:11, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मंज़िलें मत तलाश कर बाबा
ज़िन्दगी तो है इक सफ़र बाबा
एक कूचे से कल गुज़रते हुए
क्यों तू रोया था फूटकर बाबा
क्यों हरिक दर पे तेरी दस्तक है
एक दर ही पे सब्र कर बाबा
दिल के अंदर भी एक दुनिया है
डाल इस पर भी इक नज़र बाबा
तू यहां क्या तलाश करता है
ये तो है रूप का नगर बाबा।
</poem>