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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
ग़मे-ज़माना का जिसके भी दिल में चाव है
उसे ही दोस्तो जीने से कुछ लगाव है

मुझे न तिफ्ल-तसल्ली से खुश करे दुनिया
मैं जानता हूँ ये मंज़िल नहीं पड़ाव है

नहीं है कोई ख़िलाफ़े-रवानिए-दरिया
सभी रवां हैं उधर जिस तरफ बहाव है

हरेक सम्त ही मजबूरियों के तूफां हैं
अजीब हाल में खुद्दरियों की नाव है

खुलूसे-दिल की यहां क़द्र ही नहीं ए मेहर
बड़ा ही अहले-मुहब्बत में रख-रखाव है

</poem>
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