1,123 bytes added,
03:41, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हलचल सी मंच रही है बहुत आसमान में
ऊँचा बहुत गया है वो पहली उड़ान में
रफ्तार एक तीर की सब कुछ बता गई
पहली सी आबो-ताब कहां है कमान में
मैं कारवां हूँ मैं ही सफ़र मैं ही राह रौ
किरदार एक ही है मिरी दास्तान में
सुनते हैं जंगलों से शिकारी चले गये
कुछ जान आ गई है परिंदों की जान में
लफ़्ज़ों के तेरे और ही मानी न ले निकाल
ख़त लिख ऐ मेहर उसको उसी की ज़ुबान में।
</poem>