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03:44, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
झरने झीलें दरिया और समंदर तेरे
दुनिया के सारे ही दिलकश मंज़र तेरे
रानाई मैं जिन चेहरों पर देख रहा हूँ
एक तनाज़र में सारे ही पैकर तेरे
सुब्ह के सूरज की किरणों में नूर है तेरा
नज़्जारे जितने हैं हर सू मज़हर तेरे
सुर्ख़ सुनहरे सब्ज़ गुलाबी नीले पीले
कुदरत के जितने हैं रंग मनोहर तेरे
मंदिर मस्जिद गिरजे तक महदूद नहीं तू
ज़िक्र है तेरा हरसू चर्चे घर घर तेरे
</poem>