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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
ये अचानक हो गया हादसा इस शहर में
सबकी आंखें हैं खुलीं लेकिन जुबानें बंद हैं

खोल लेता हूँ मैं तन्हाई में यादों की किताब
इसमें बीते वक़्त की सब दास्तानें बन्द हैं

देखने को वो नज़र आता है इक सादा-सा शख्स
उसकी मुट्ठी में मगर कितनी ही जानें बन्द हैं

तुम न जाने किन परों पर उड़के आ पहुंचे यहां
ऐसी रुत में तो परिंदों की उड़ानें बन्द हैं

यूँही गाता यूँही अक्सर गुनगुना उठता नहीं
मेहर दिल की बांसुरी में कितनी तानें बन्द हैं।
</poem>
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