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{{KKRachna
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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
ज्ञान का दीपक जला दे
तू जहालत को मिटा दे

ज़िंदगी को हौसला दे
नेक रस्ते पर चला दे

कुदरती आबो हवा दे
ख़ुशनुमा मंज़र बना दे

फूल गुलशन में खिलेंगे
तू ज़रा सा मुस्कुरा दे

खूब है ये ज़िंदगानी
खूबतर इस को बना दे

मुश्किलें ही मुश्किलें हैं
मुश्किलों का हल बता दे

बेहिसो लाचार हैं जो
मत उन्हें तू यातना दे

ज़िंदगी है कशमकश में
क्या करूं कुछ मश्विरा दे

फड़फड़ाता है परिंदा
क़ैद से इस को छुड़ा दे

जा रहा हूँ दूर तुझ से
हाथ रुख़्सत को हिला दे

चाहता हूँ तुझ से मिलना
ऐ ख़ुदा अपना पता दे
</poem>
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