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{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है
उसी का मर्तबा सब से बड़ा है

बुरे हालात में जो काम आए
उसे पूजो वो सचमुच देवता है

धुआं फैला है हर सू नफरतों का
मुहब्बत का परिंदा लापता है

न जाने हश्र क्या हो मंज़िलों का
यहाँ अंधों की ज़द पे रास्ता है

अगर हो साधना निष्काम अपनी
जहाँ ढूढ़ो वहीं मिलता ख़ुदा है

वहीं होती सदा सच्ची कमाई
जहाँ भी नेकियों का क़ाफ़िला है
</poem>
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