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05:16, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हर किसी को ख़ुशी चाहिए
पुरसुकूं ज़िंदगी चाहिए
चाहतों की कहाँ इंतिहा
जाम को तिश्नगी चाहिए
पार कर लूंगा सब मुश्किलें
बस दुआ आप की चाहिए
आर्जू और कुछ भी नहीं
इक तिरी बंदगी चाहिए
जीत को हौसले के सिवा
क़़ल्ब में आग भी चाहिए
</poem>