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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
ज़िंदगी बेमज़ा हो गई
देखिये क्या से क्या हो गई

फिर रही है बुझाती दिये
सरफिरी ये हवा हो गई

चाहियें अब दुआएं मुझे
बेअसर हर दवा हो गई

नैट पर चैट करते हैं सब
डाक तो लापता हो गई

आज कल देखिये डॉटकॉम
हर किसी का पता हो गई

इम्तिहां लोगे यूं कब तलक
छोडिए इंतिहा हो गई
</poem>
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