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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
आज कल हालात हैं कुछ तंग से
ज़िंदगी रंग लो ख़ुशी के रंग से

सब बना लेंगे तुम्हें अपना अजीज
पेश आना सीख लो तुम ढंग से

हौसला हरगिज़ न अपना छोड़ना
जीत कर लौटोगे तुम हर जंग से

टीसते हैं जख़्म कैसे क्या कहूँ
बिजलियाँ सी कौंधती हैं अंग से

देख कर उन के जमालेहुस्न को
रह गए ‘अज्ञात' हम तो दंग से
</poem>
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