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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
कोसों पैदलपैदल चल कर दफ्तर जाते बाबू जी
सांझ ढले थकहार नगर से वापिस आते बाबू जी

शायद उन की ये आदत भी शामिल है दिनचर्या में
घर में घुसते ही बच्चों को डाँट पिलाते बाबू जी

पंचायत के मुखिया की भी जिम्मेदारी है उन पर
सिर पर पगड़ी बांधे सब पर रौब जमाते बाबू जी

भोजनपानी‚ कपड़ेलत्ते या फिर चश्मे की खातिर
जबतब देखो अम्मा को आवाज़ लगाते बाबू जी

हर मुश्किल से टकराने की हिम्मत अब भी है बाक़ी
हँसतेहँसते सारे घर का बोझ उठाते बाबू जी

रोज़ सवेरे श्रद्धा से नित तुलसी की पूजा कर के
अब्बू अम्मा के फोटो पर फूल चढ़ाते बाबू जी

उगते सूरज को जल देते चिड़ियों को देते दाना
गैया औ कुत्ते को रोटी रोज़ खिलाते बाबू जी
</poem>
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