1,812 bytes added,
06:12, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तीर या तलवार आख़िर किस लिए
आपसी तकरार आख़िर किस लिए
दरमियां दीवार आख़िर किस लिए
टूटते घरबार आख़िर किस लिए
था जो मेरे दिल का चारागर वही
हो गया बीमार आख़िर किस लिए
दो क़दम ही चल के मेरी ज़िंदगी
हो गई बेज़ार आख़िर किस लिए
सब दुकानों पर मुखौटों का लगा
बोलिये अंबार आख़िर किस लिए
पूछते हैं तितलियों से सब भ्रमर
फूल के संग ख़ार आख़िर किस लिए
कोख़ ही में बालिका के भ्रूण का
कर रहे संहार आख़िर किस लिए
तलखियों के घूंट पी कर बह रही
आंसुओं की धार आख़िर किस लिए
बढ़ रहे हैं दुश्मनों के हौसले
मौन है सरकार आख़िर किस लिए
रात का विस्तार होता जा रहा
भोर है लाचार आख़िर किस लिए
दे रहे ‘अज्ञात' को माँगे बिना
मश्विरे बेकार आख़िर किस लिए
</poem>