1,442 bytes added,
06:13, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िंदगी का हर लम्हा खुशगवार कर लिया
भेदभाव छोड़ कर सब से प्यार कर लिया
रब के हाथ सौंप कर ज़िंदगी की डोर को
मैंने आँख मूंद कर ऐतबार कर लिया
दाम माँगने लगे ज़िंदगी के जब नफ़स
कुछ नक़द चुका दिया कुछ उधार कर लिया
ज़िंदगी की होड़ में आज नौजवान ने
रास्ता ये कौन-सा इख्तियार कर लिया
मज़हबों की धार के साथ बह सके न हम
हम ने अपने आप को दर किनार कर लिया
थक गए हकीकतों का करते-करते सामना
ख़्वाब बेचने का अब रोज़गार कर लिया
मेरे ग़म को बाँटने आ भी जा तू ऐ खुशी
देर तक बहुत तेरा इंतिजार कर लिया
</poem>