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{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
मुझ को सफेद तो कभी काला बना दिया
तक़दीर ने बिसात का प्यादा बना दिया

गूंगा बना दिया कभी बहरा बना दिया
हालात ने हनीफ को क्या-क्या बना दिया

करते नहीं ज़रा भी क्यों इस की कदर कभी
तुम ने तो ज़िंदगी को तमाशा बना दिया

हर आइने ने मुझ को दिखाई बुराइयां
नज़रों ने आप की मुझे अच्छा बना दिया

मानी न हार हौसलों ने मुश्किलों में भी
पर्वत को काट कर नया रस्ता बना दिया

तुतला के बोलते हैं बजाते हैं झुनझुना
बच्चे ने वालदैन को बच्चा बना दिया

थे आदमी तो हम भी बड़े काम के मगर
ऐशो तरब ने हम को निकम्मा बना दिया

अफसोस की है बात कि फ़ित्नागरों को ही
अहले वतन ने देश का राजा बना दिया

‘अज्ञात' ने लकीर दूजी खींच कर नई
पहली खिंची लकीर को छोटा बना दिया
</poem>
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