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भूमिका / अजय अज्ञात

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दोस्तो!

मैं कोई शाइर नहीं हूँ लेकिन शाइरी का दीवाना ज़रूर हूँ। कक्षा 7 में कविता से प्रेम
हो गया था। पिता श्री कविताएँ लिखते हैं, उस समय भी लिखते थे। उनकी डायरी
से अपनी मनपसंद पंक्तियाँ चुराकर अपनी कॉपी में उतार लेता था। धीरे-धीरे
टूटी-फूटी तुकबंदियाँ करने लगा।

मशहूर गायक जगजीत सिंह की गाई हुई ग़ज़लों ने मुझे विशेष रूप से ग़ज़लों का
दीवाना बना दिया। ग़ज़लों के प्रति एक कशिश सी पैदा हुई। मुकेश के गाए हुए
गाने और जगजीत जी की गाई हुई ग़ज़लें दिल को आज भी सुकून पहुँचाते हैं।
कविता लिखने का शौक़ स्कूल के समय से आरम्भ हुआ। कॉलेज में पत्रिका का
संपादन भी किया। धीरे-धीरे रूचि और बढती गई। कविता, मुक्तक, देशभक्ति
गीत लिखने का प्रयास करता रहा।

कुछ ग़ज़ल के व्याकरण की किताबें भी ख़रीद कर पढ़ीं। उर्दू की डिक्शनरी भी
ख़रीदी। दिल्ली व एनसीआर में कार्यक्रमों में आने-जाने से भी ज्ञान में वृद्धि हुई।
लेकिन सच बात यह है कि ये तिश्नगी बुझने के बजाय और बढ़ती ही जा रही है।
सीखने की ललक बरकरार है। सागर में एक बूँद के समान ही सीख पाया हूँ। अपने
जज़्बात को अपनी शाइरी के माध्यम से आप तक पहुँचा रहा हूँ।

दुआओं से नवाज़िएगा।
मेरी बिसात क्या कि मैं इक शे‘र कह सकूँ
होती है अपने आप ही आमद कभी कभी

अजय अज्ञात
</poem>
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