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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
आपकी सच्ची दुआओं का असर है
रंग ख़ुशियों का मेरे कैनवास पर है

आज के हालात पर मेरे क़लम की
गिद्ध-सी पैनी सदा रहती नज़र है

बेईमानी किस लिए करने की सोचूँ
दोस्तो मेरी ज़रूरत पेट भर है

मैं मुसल्सल चलते-चलते थक गया हूँ
ज़िंदगानी का नहीं कटता सफ़र है

एक पल जिस के बिना जीना था मुश्किल
एक अरसे से नहीं उसकी ख़बर है

फल गयी कोई दुआ ‘अज्ञात’ को भी
मिल गयी अब कामयाबी की डगर है
</poem>
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