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03:48, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
एक नन्हा सा दिया, क्या बात है!
रात भर जलता रहा, क्या बात है!
भोर तक जलते दिए को देख कर
उगते सूरज ने कहा, ‘क्या बात है’!
हो गयी नाकाम जब हर इक दवा
काम आई इक दुआ, क्या बात है!
जिस पे टूटा है ग़मों का इक पहाड़
वो रहा है मुस्कुरा, क्या बात है!
खींचता रहता नयी सेल्फी ‘अजय’
ख़ुद का दीवाना हुआ, क्या बात है!
</poem>