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{{KKRachna
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
सफलता का उधर से रास्ता है
जिधर उम्मीद का दीपक जगा है

चराग़े इल्म है रौशन जहाँ भी
उजालों का वहाँ इक सिलसिला है

छिपा पाओगे कैसे तिशनगी को
ये पनघट प्यासे को पहचानता है

जियो और प्यार से जीने दो सब को
यही तो ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है

ज़्ारा ऐ हुस्न तू चलना संभल कर
हवस का रंग मौसम में घुला है

कहाँ जाएं किधर जाएं बताओ
शजर ही पंछियों का आसरा है

सवाबों की कमाई हो तो कैसे
किसी का ग़म कभी साझा किया है?
</poem>
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