1,290 bytes added,
04:01, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दुआओं के असर को ख़ुद कभी यूँ आज़माना तुम
किसी के ज़ख़्म पर थोड़ा कभी मरहम लगाना तुम
समंदर में उतर जाना हुनर अपना दिखाना तुम
सफ़ीने के बिना इस पार से उस पार जाना तुम
मसाइल से न घबरा कर कभी तुम ख़ुदक़ुशी करना
अंधेरों में उम्मीदों के चराग़ों को जलाना तुम
मिलें रुस्वाईयाँ तुमको उठाये उँगलियाँ कोई
मुहब्बत का कभी ऐसा तमाशा मत बनाना तुम
कि जैसे छलनी हो कर भी बजे है बांसुरी मीठी
किसी भी हाल में रहना हमेशा मुस्कुराना तुम
</poem>