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04:40, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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आज इस वातावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
इस क्षरित पर्यावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
दौड़ते रहते हैं हरदम स्वर्ण मृग के पीछे ही
अपनी ख़ुशियों के हरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
हमने भूमि वायु जल सब कुछ विषैला कर दिया
इस बदलते आवरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
हम ने ख़ुद अपने ही हाथों से उजाड़े हैं चमन
ख़ुशबू-ए-गुल के मरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
देख कर अपने बड़ों को ही तो बच्चे सीखते
बच्चों के इस आचरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
ज़िंदगी की बह्र क्या हो, क्या रदीफ़ो क़ाफ़िया
इस ग़ज़ल के व्याकरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद
</poem>