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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
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<poem>
बात लाओगे अगर दिल की ज़ुबाँ पर
राज़ खुल जायेंगे फिर सारे जहाँ पर

फ़िक्र कर नादान अपने आशियाँ की
बिजलियों की हैं निगाहें आशियाँ पर

था यक़ीनी उस का आना दिल पे मेरे
तीर जब उस ने चढ़ाया था कमाँ पर

सहमा-सहमा है यहाँ हर इक परिन्दा
वक्त क़ैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर

सोच कर अब हो गई हँ मैं परेशाँ
वक्त मुश्किल क्यूँ पड़ा इक मेहरबाँ पर

इस तरह ले चल हमारे कारवाँ को
कोई आफ़त आ न पाये कारवाँ पर

उन की बातों से महक जाता है ये मन
जैसे आ जायें बहारें गुलिस्ताँ पर

मैं तसव्वुर में ये अक्सर सोचती हँ
चल रहे हों जैसे हम तुम कहकशाँ पर

क्या बिगाड़ेगा कोई हिन्दोस्ताँ का
है ख़ुदा जब मेहरबान हिन्दोस्ताँ पर

किस पवित्र आत्मा का है ये मस्कन
आस्माँ भी झुक रहा है आस्ताँ पर
</poem>
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