1,208 bytes added,
06:08, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
किसी रोज़ हम भी सँवर कर तो देखें
गुलों सा कभी हम निखर कर तो देखें
बिखर कर भी हो रौशनी चार जानिब
सितारों के जैसा बिखर कर तो देखें
हमें उस का दीदार होगा यक़ीनन
कभी ध्यान में हम उतर कर तो देखें
हिला कर जो रख दे ज़मीं आस्माँ को
कभी इस तरह आह भर कर तो देखें
बिछाई हैं रस्ते में कलियाँ किसी ने
कभी आप इधर से गुज़र कर तो देखें
ये हर रोज़ मरना कुछ अच्छा नहीं है
वतन पर किसी रोज़ मर कर तो देखें
</poem>