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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
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<poem>
दिन कोई ऐसा हो दुख के बोझ हल्के हो सकें
रात ऐसी हो कोई जब चैन से हम सो सकें

रात ही वो नेक दिल माँ है कि जिस की गोद में
हम सराहनों के तले मुँह को छुपा कर सो सकें

ऐ ख़ुदा दर से तिरे तौफ़ीक़ ये हम को मिले
ज़िंदगी का बोझ हम आसानियों से ढो सकें

नेक बँदे हम बनें, हम माँगते हैं ये दुआ
बीज हम दुनिया में आ कर नेकियों के बो सकें

ये नहीं मंज़ूर था शायद ख़ुदा की ज़ात को
तुम हमारे हो सको, और हम तुम्हारे हो सकें

हो कोई दीवार जिस को, हम सुनायें हाले-दिल
हो कोई दरवाज़ा ऐसा, जिस से लग कर रो सकें

प्यार के दो बोल हैं क़ीमत हमारी ऐ 'अनु'
काश ये क़ीमत जहाँ वाले अदा कर तो सकें
</poem>
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